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Home > Stories of Premchand प्रेमचंद की कहानियाँ > 20: प्रेमचंद की कहानी "लोकमत का सम्मान" Premchand Story "Lokmat Ka Samman"
Podcast: Stories of Premchand प्रेमचंद की कहानियाँ
Episode:

20: प्रेमचंद की कहानी "लोकमत का सम्मान" Premchand Story "Lokmat Ka Samman"

Category: Arts
Duration: 00:19:36
Publish Date: 2018-07-27 09:30:00
Description:

बेचू शहर में आया तो ऐसा जान पड़ा कि मेरे लिए पहले से ही जगह ख़ाली थी। उसे केवल एक कोठरी किराये पर लेनी पड़ी और काम चल निकला। पहले तो वह किराया सुनकर चकराया। देहात में तो उसे महीने में इतनी धुलाई भी न मिलती थी। पर जब धुलाई की दर मालूम हुई तो किराये की अखर मिट गयी। एक ही महीने में गाहकों की संख्या उसकी गणना-शक्ति से अधिक हो गयी। यहाँ पानी की कमी न थी। वह वादे का पक्का था। अभी नागरिक जीवन के कुसंस्कारों से मुक्त था। कभी-कभी उसकी एक दिन की मज़दूरी देहात की वार्षिक आय से बढ़ जाती थी।

लेकिन तीन ही चार महीने में उसे शहर की हवा लगने लगी। पहले नारियल पीता था, अब एक गुड़गुड़ी लाया। नंगे पाँव जूते से वेष्टित हो गये और मोटे अनाज से पाचन-क्रिया में विघ्न पड़ने लगा। पहले कभी-कभी तीज-त्यौहार के दिन शराब पी लिया करता था, अब थकान मिटाने के लिए नित्य उसका सेवन होने लगा। स्त्री को आभूषणों की चाट पड़ी। और धोबिनें बन-ठनकर निकलती हैं, मैं किससे कम हूँ। लड़के खोंचे पर लट्टू हुए, हलवे और मूँगफली की आवाज़ सुनकर अधीर हो जाते। उधर मकान के मालिक ने किराया बढ़ा दिया; भूसा और खली भी मोतियों के मोल बिकती थी। लादी के दोनों बैलों का पेट भरने में एक ख़ासी रकम निकल जाती थी। अतएव पहले कई महीनों में जो बचत हो जाती थी, वह अब गायब हो गयी। कभी-कभी खर्च का पलड़ा भारी हो जाता; लेकिन किफायत करने की कोई विधि समझ में न आती थी। निदान स्त्री ने बेचू की नज़र बचाकर गाहकों के कपड़े पछाई देने शुरू किये।

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